सीकर के सांसद अमरराम का संघर्ष हुवा सफल । सीकर जिला । अमरराम CPI(M)

सात बार हारने के बाद आठवीं बार मे बने सीकर के सांसद : अमराराम


राजनीति में सफलता और असफलता का चक्र चलता रहता है, लेकिन कुछ नेताओं की दृढ़ता और संघर्ष की कहानियाँ हमें प्रेरणा देती हैं। ऐसी ही एक कहानी है अमराराम की, जिन्होंने सात बार लोकसभा चुनावी हार का सामना किया, लेकिन अपनी हिम्मत और मेहनत से आठवीं बार सीकर से वामपंथ का परचम लहराया और सीकर के सांसद बने।

Sikar Sansad


शुरुआती जीवन और संघर्ष:-

अमराराम का जन्म एक सामान्य किसान परिवार में हुआ था। सीकर के मुंडवारा गाँव मे हुआ था । बचपन से ही उन्होंने अपने गाँव के किसानों और मजदूरों की समस्याओं को करीब से देखा और महसूस किया। यही अनुभव उनके मन में सामाजिक न्याय और बराबरी की भावना को प्रबल बनाता गया। जाट बोर्डिंग मे रह कर अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने सीकर जिले में वामपंथी आंदोलन से जुड़कर जनसेवा की शुरुआत की।


सात हारों का सफर:-

राजनीतिक सफर की शुरुआत में ही अमराराम को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। cpi(m) से चुनाव लड़ने के कारण अमरा को धोद और दांतारामगढ़ से कई बार चुनाव हार चुके है। उन्होंने लगातार सात बार विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हर बार हार का सामना करना पड़ा। इन हारों ने उनके हौसले को कमजोर नहीं किया, बल्कि उन्हें और भी अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित किया और indi गटबंधन् के साथ चुन्नाव लड़ा और सीकर के सांसद बने। वे जानते थे कि सच्ची सेवा और समर्पण का फल देर-सवेर जरूर मिलता है।

Amraram comrade


गाँव-गाँव जाकर जनसंपर्क:-

हार के बावजूद अमराराम ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपने क्षेत्र के लोगों से निरंतर संपर्क बनाए रखा। वे गाँव-गाँव जाकर किसानों, मजदूरों और गरीब वर्ग के लोगों की समस्याओं को सुनते और किसान आंदोलनों मे भाग लेते रहे और संघर्ष करते रहे। उनकी यह निष्ठा और सेवा का जज्बा धीरे-धीरे लोगों के दिलों में जगह बनाने लगा।


आठवीं बार की जीत:-

अमराराम की मेहनत और संघर्ष का फल आखिरकार आठवीं बार में मिला। उन्होंने सीकर विधानसभा चुनाव में वामपंथी विचारधारा को जन-जन तक पहुँचाने में सफलता पाई और ऐतिहासिक जीत हासिल की। उनकी यह जीत न केवल उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि थी, बल्कि वामपंथी आंदोलन के लिए भी एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुई।


समाज के लिए समर्पण:-

चुनाव जीतने के बाद भी अमराराम ने अपने उसूलों को नहीं छोड़ा। वे अब भी अपने क्षेत्र के लोगों के बीच सक्रिय रहते हैं और उनकी समस्याओं के समाधान के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, और कृषि के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जिससे सीकर जिले के लोगों को काफी लाभ हुआ है।


निष्कर्ष:


अमराराम की कहानी हमें सिखाती है कि मेहनत, समर्पण और दृढ़ता से हम किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। सात बार हारने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और आठवीं बार में सफलता हासिल की। उनकी यह जीत सिर्फ एक चुनावी जीत नहीं, बल्कि एक सिद्धांत, एक विचारधारा और एक संघर्ष की जीत है। अमराराम की इस यात्रा से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि सच्चे और ईमानदार प्रयास कभी व्यर्थ नहीं जाते।

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